नियमित योग करने से बढ़ता है स्पर्म काउंट: स्टडी

नियमित योग करने से बढ़ता है स्पर्म काउंट: स्टडी

सेहतराग टीम

योग अब भारत से निकलकर पूरे विश्व में फैल चुका है। यही नहीं इसके महत्व को पूरे विश्वभर में भी माना जा रहा है। इसका असर इतनी तेजी से फैल रहा है कि वैज्ञानिक भी इसके पीछे पड़ गए हैं। लगातार इसपर शोध कर रहे हैं। वहीं भारतीय वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में बताया कि योग शुक्राणुओँ की गुणवत्ता पर सकारात्मक असर करता है। इसलिए योग करने से हमारी जीवनशैली अच्छी होती है। यह बात कोशकीय एवं आणविक जीव विज्ञान केंद्र (सीसीएमबी), हैदराबाद और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन के माध्यम से बताई है।

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शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि योग के लाभकारी गुणों का परस्पर संबंध शुक्राणुओं में जीन्स की अभिव्यक्ति को प्रभावित करने वाले गैर-आनुवांशिक (एपिजनेटिक) परिवर्तनों से है। लगातार योग के अभ्यास से बांझ पुरुषों में वीर्य संबंधी ऑक्सीडेटिव तनाव में कमी और शुक्राणु गतिशीलता में सुधार देखा गया है, जो इसकी फर्टिलाइजेशन क्षमता को दर्शाता है।

इस अध्ययन में शामिल प्रतिभागियों को 21 दिनों तक प्रतिदिन एक घंटा शारीरिक गतिविधियां, योगासन, श्वास क्रियाएं (प्राणायाम) और ध्यान संबंधी अभ्यास करने को कहा गया था। शोधकर्ताओं का कहना है कि ऐसा करने पर प्रतिभागी रोगियों की शुक्राणु क्रियाशीलता में सुधार देखा गया है।

शोधकर्ताओं ने डीएनए विश्लेषण की अत्याधुनिक विधियों के उपयोग से योग साधकों में शुक्राणु मिथाइलोम को रीसेट किया है। मिथाइलोम को जीन्स की अभिव्यक्ति को सीधे तौर पर नियंत्रित करने के लिए जाना जाता है। यहां मिथाइलोम से तात्पर्य उस रासायनिक परिवर्तन के स्वरूप से है, जिसे डीएनए मिथाइलेशन कहते हैं। इस अध्ययन में मिथाइलोम का संबंध लगभग 400 जीनों में परिवर्तन के साथ जुड़ा पाया गया है। इनमें कई ऐसे जीन भी शामिल हैं, जो पुरुष प्रजनन क्षमता, शुक्राणु जनन और भ्रूण प्रत्यारोपण में अहम भूमिका निभाते हैं।

सीसीएमबी के निदेशक डॉ राकेश मिश्र ने बताया कि इस अध्ययन में एपिजीनोमिक पद्धति के उपयोग से पहचाने गए जीन्स आगामी परीक्षणों के लिए सशक्त उम्मीदवार हो सकते हैं। यह एक शुरुआती अध्ययन है, जो सीमित प्रतिभागियों पर किया गया है।

आधुनिक चिकित्सा पद्धति में बीमारियों के उपचार के लिए योग आधारित जीवनशैली सहायक साबित हो रही है। शोधकर्ताओं का कहना है कि योग आधारित जीवनशैली पुरुषों को बाँझपन से उबरने में मददगार हो सकती है। हालांकि, इसके लिए व्यापक स्तर पर अध्ययन किए जाने की आवश्यकता है

जीवों की आनुवांशिक प्रणाली पर्यावरणीय कारकों द्वारा व्यापक रूप से प्रभावित और नियंत्रित होती है। डीएनए अनुक्रम के विपरीत पर्यावरण के प्रभावों के कारण होने वाले एपिजेनिटिक परिवर्तन गतिशील और प्रतिवर्ती होते हैं। अस्वस्थ जीवनशैली और सामाजिक आदतों से भी शुक्राणुओं पर प्रतिकूल असर पड़ता हैं, जिसके परिणामस्वरूप हाल के वर्षों में पुरुषों की प्रजनन क्षमता में कमी आई है।

यह अध्ययन शोध पत्रिका एंड्रोलॉजिया में प्रकाशित किया गया है। शोधकर्ताओं में डॉ राकेश मिश्र के अलावा शिल्पा बिष्ट, सोफिया बानू, सुरभि श्रीवास्तव, रश्मि यू. पाठक, राजीव कुमार और रीमा डाडा अध्ययन में शामिल थे। 

(साभार-इंडिया साइंस वायर की रिसर्च)

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